अधपके बालों को अब भी सँवारती हूँ मैं,
“उसने कहा था” तुम्हारे बाल बहुत खुबसूरत है।
ऐनक उतार अपनी आँखों को दर्पण में
अब भी निहारती हूँ मैं,
“उसने कहा था” तुम्हारी आँखे बहुत खुबसूरत है।
उभर आई चेहरे पर झुर्रिंयाँ
जिन्हें छुपाने की अब भी कोशिश करती हूँ मैं,
“उसने कहा था”तुम्हारा चेहरा बहुत खुबसूरत है।
मुकाम हासिल नही कोई,बनाने की अब भी कोशिश करती हूँ मैं,
“उसने कहा था” तुम्हारी पहचान बहुत खुबसुरत है ।
#सरितासृजना