समुद्र की रेत पर बने थे जो निशां,
आकर लहरों ने उनको मिटा दिया।
अब कहाँ ढुढूँ तुझको मैं दर-ब-दर,
तू तो हवाओं में ना जाने कहीं गुम हो गया।
कदम हमेशा ठहर गये मँज़िलों से पहले,
वक्त ने जब-जब अपना मुखौटा बदल दिया।
राहें छूटी, छूटे दोस्त और दुश्मन,
ज़िन्दगीं ने पता नही कब ,कैसेऔर क्यूँ, अपना कारवाँ बदल दिया।
#सरितासृजना