ज्यूँँ ही तेरा जिक्र आया महफिल मेंं ,हम उठ लिए उस महफिल से ,
क्या करते तेरे नाम के पीछे-पीछे ,
तेरी यादेंं जो चली आती है।
चंंद रोज ही तो हुए है उस वाकये को ,
जब जानबूझकर निकल आये थे हम , तेरी ही गली से।
समझ जाते सभी दोस्त हम क्योंं कतराते है ,
इसकर तो वो भी बातोंं के रुख बदल जाते है ।
जख्म हरे है,अबतक हमारे सूख नही पाये है ,
लौट आते है कदम हमेशा जाकर तेरी चौखट से।
है सीने मेंं दफ्न राज तुझ संंग बेवफाई का ,
जीते-जी नही पर ,आकर ले जाना,
सारे सवालोंं के जवाब एक दिन ,”मेरी कब्र से”।
#सरितासृृजना
bhaatdal ने कहा:
Bahut khoobsurat
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pandeysarita ने कहा:
शुक्रिया जी
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bhaatdal ने कहा:
Swagat hai
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अजय बजरँगी ने कहा:
सुन्दर रचना ✅✅✅✅🙏🙏🙏
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pandeysarita ने कहा:
जी धन्यवाद
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Letters That Matter ने कहा:
Shandaar
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pandeysarita ने कहा:
शुक्रिया
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Abhay ने कहा:
सरिता जी, अच्छा है ☺️
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pandeysarita ने कहा:
आभार
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Sanjay Ronghe ने कहा:
वाह सुरेख
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pandeysarita ने कहा:
आभार
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The Insider ने कहा:
Arey awesome 👌👌👌
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pandeysarita ने कहा:
Thanks
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Rohit Nag ने कहा:
Jabardast, bahut hi khoobsurati se shabdo ko piroya hai…amazing ❤
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pandeysarita ने कहा:
thanks Rohit
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gauravtrueheart ने कहा:
सुन्दर कृति
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pandeysarita ने कहा:
धन्यवाद
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