ज्यूँँ ही तेरा जिक्र आया महफिल मेंं ,हम उठ लिए उस महफिल से ,

क्या करते तेरे नाम के पीछे-पीछे ,

तेरी यादेंं जो चली आती है।

चंंद रोज ही तो हुए है उस वाकये को ,

जब जानबूझकर निकल आये थे हम , तेरी ही गली से।

समझ जाते सभी दोस्त हम क्योंं कतराते है  ,

इसकर तो वो भी बातोंं के रुख बदल जाते है ।

जख्म हरे है,अबतक हमारे सूख नही पाये है ,

लौट आते है कदम हमेशा जाकर तेरी चौखट से।

है सीने मेंं दफ्न राज तुझ संंग बेवफाई का ,

जीते-जी नही पर ,आकर ले जाना,

सारे सवालोंं के जवाब एक दिन ,”मेरी कब्र से”।

#सरितासृृजना