अंबर से बरस रहा है देखो “पानी”।
इस प्यासी धरती की प्यास बुझा रहा है देखो “पानी”।
जीवन में अपनी महत्ता को समझा रहा है देखो “पानी”।
इंसा को कद्र नही उसकी इस बात को भी बता रहा देखो “पानी”।
कमी मेरी हो जायेगी तब तरसोगे ये भी जता रहा है देखो “पानी”।
सहेज लो मुझे ,संचय कर लो मुझे बार-बार यही दोहरा रहा है देखो “पानी”।
मुझसे ही जीवन है ये ना भुलो, ऐ इंसानों हर बार यही याद दिला रहा है देखो “पानी।”
#सरितासृजना
रजनी की रचनायें ने कहा:
मौसम के और जल की महत्ता से आपकी कविता सटीक और सुन्दर है।
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pandeysarita ने कहा:
जी हाँ रजनी जी हमें जल की कीमत उसके ना मिलने पर समझमें आती है।
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Heart to soul. ने कहा:
Khoobsurat.
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pandeysarita ने कहा:
आभार
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Rohit Nag ने कहा:
Mast …
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pandeysarita ने कहा:
😁
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Madhusudan ने कहा:
Bilkul sahi, jal hi jiwan hai….bahut khub likha.
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pandeysarita ने कहा:
जी धन्यवाद
पर मेरा आपसे भी निवेदन है पानी बचाएँ ।
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Madhusudan ने कहा:
Jarur…
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sayarav ने कहा:
बहुत खूब
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pandeysarita ने कहा:
शुक्रिया
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Rupali ने कहा:
Behatareen.
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pandeysarita ने कहा:
आभार
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Cory Melancon ने कहा:
👍
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sudhirjugran ने कहा:
बहुत दिनों से मैं भी जल के विषय पर सोच रहा था। आपने बहुत ही अच्छी कविता लिखी है। पञ्च तत्वों में जल अग्नि, वायु और आकाश के गुण लिए सृष्टि के सृजन का महतवपूर्ण तत्त्व है। रस इसका स्वाभाव है, जो सभी जीवों की आत्मा को तृप्ति प्रदान करता है। सुंदर सरिता जी,
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pandeysarita ने कहा:
धन्यवाद सुधीरजी
बहुत खुशी होती है जब आप जो कहना चाहते है वो लोग समझ जाते है। कभी-कभी शब्द पूरे नही हो पाते अपने भावों को व्यक्त करने में। मैं कभी ज्यादा नही सोचती ।बस लिख देती हूँ जो मन में आता है।अपने भाव बिखेर देती हूँ बस पन्नों पर।
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