ना हिंन्दु रहना चाहती हूँ
ना मुसलमां रहना चाहती हूँ
मैं तो बस फकत इक इसां रहना चाहती हूँ।

ना कोई जमीं चाहती हूँ
ना आसमाँ चाहती हूँ
मैं तो बस फकत अपनों
के दिलों में रहना चाहती हूँ।

ना ताज चाहती हूँ
ना राज चाहती हूँ
मैं तो बस फकत ऐ हमवतनों आपका प्यारा साथ चाहती हूँ।

#सरितासृजना