कितना बेफिकरा है “देखो ये बचपन”

अगल-बगल मेंं क्या घटता ,क्या बढ़ता 

मुझको क्या लेना-देना कहता है ,देखो ये बचपन।

जब मर्जी सो जाऊँँ ,जब मर्जी उठ जाऊँँ

समय की सीमा से परे ,ना कोई बंंधन

लागू नही कोई नियम मुझपर कहता है, देखो ये बचपन।

किसी की आँँखोंं का तारा मैंं तो

किसी के जिगर मेंं भी तो रहता मैंं

हर एक लाड लड़ाता मुझको कहता है, देखो ये बचपन।

ना मौसम की परवाह मुझे है 

ना भूख प्यास सताती मुझको, निकल गया जो मस्ती मेंं

फिर याद कहाँँ घर आता मुझको कहता है ,देखो ये बचपन।

दुनियादारी से मुझको काम नही

कोई भी तामझाम कहाँँ सताता है मुझको

मेरे मन पर मेरी सरकार चले कहता जाता है, देखो ये बचपन।

तुम झगड़ो, तुम उलझोंं ,ये सब मुझको कहाँँ सुहाता है

करनी और भरनी तुम ही जानोंं

ये सब मुझको रास कहाँँ आता कहता है ,देखो ये बचपन।

मैंं जब सोऊँँ ,बेसुध सा सोऊँँ

मैंं जब जागूँँ ,सदा खिलखिलाऊँँ

बाहर-अंंतस सुख चैन से रहता कहता है, देखो ये बचपन।

इंंसानोंं मेंं जबतक रहता मैंं,वो इंंसान बना रहता है

बीत गया जब ये बचपन फिर वो

रुप बदल लेता जीवन का कैसा कहता है ,देखो ये बचपन।

कितना निर्मल,कितना सुंंदर ,हर पल चंंचल

पग-पग स्पंंदित, पल-पल हर्षित ,गले लगाता सबको

सब समान है संंदेश यही कहता है, देखो ये बचपन।

#सरितासृृजना