बार-बार वही पर, हर बार नही

सुनो ,ऐ दुनियावालोंं

ये, अत्याचार इस बार नही।

लड जाऊँँ तूफानोंं से, टकरा जाऊँँ चट्टानोंं से

समझ जाओ, इतनी भी अब मैंं लाचार नही

कर लो भरोसा, “आज की नारी “हूँँ

इतनी भी कमजोर नही,लगते लांंछन हर पल

मर्यादाओंं का उल्लंंघन , ऐसे मेरे संंस्कार नही।

संंभल जाओ, ताकत के मद मेंं जीनेवालोंं

कर ना जाऊँँ कही, दुर्गा सा संंहार नही

रुक जाओ, अब बस सहन मुझको ,ये बारम्बार नही

खत्म करो ये, अब बंंद करो ये,

घर-घर अलख जगा दो ये

सहन कही भी ,”आज की नारी” का अपमान नही।

#सरितासृृजना