ऐ हवा मुझको भी उस गुलशन का पता दे ,

जहाँँ इंंसानियत के फूल खिला करते है,

मैंं तो जिस चमन मेंं रहती हूँँ ,

वहाँँ पर तो सिर्फ और सिर्फ ,

“हैवानियत” के बांंशिदेंं रहा करते है।

पहले ना निकल पाती थी,

पुरुषोंं के सम्मान की खातिर,

आज भी नही निकल पाती हूँँ,

अपने सम्मान की खातिर ।

खडा है हर मोड पर ,

हर गली के छोर पर ,

       कोई

मेरी लाज के आँँचल को ,

तार-तार करने की खातिर ।

#सरितासृृजना