ऐ हवा मुझको भी उस गुलशन का पता दे ,
जहाँँ इंंसानियत के फूल खिला करते है,
मैंं तो जिस चमन मेंं रहती हूँँ ,
वहाँँ पर तो सिर्फ और सिर्फ ,
“हैवानियत” के बांंशिदेंं रहा करते है।
पहले ना निकल पाती थी,
पुरुषोंं के सम्मान की खातिर,
आज भी नही निकल पाती हूँँ,
अपने सम्मान की खातिर ।
खडा है हर मोड पर ,
हर गली के छोर पर ,
कोई
मेरी लाज के आँँचल को ,
तार-तार करने की खातिर ।
#सरितासृृजना
kukarmi_vishesh ने कहा:
दुनिया उतनी बेरंग न थी जितना उसे लगती थी,
शायद ब्लैक एंड वाइट टीवी का असर था… 🎫
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pandeysarita ने कहा:
हाँ हो सकता है😀😀😀
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Ramkinkardastripathi ने कहा:
हालांकि जादा रचनाये…आपकी मैंने नही पढ़ पाया हूँ लेकिन ये रचना के लिए पास कोई भी शब्द नही है । सच्चई को बांया करती है आज के इस युग की वास्तविकता की है।।
#सर्वश्रेस्ठ रचना……
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pandeysarita ने कहा:
जी धन्यवाद
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krishnaagyani ने कहा:
जितनी तारीफ करें कम हैं ।
आपकी बाँतो से मेरी आंख नम है ।।
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pandeysarita ने कहा:
वाह! 👌
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Rohit Nag ने कहा:
Wow….sarita ji awesome…
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pandeysarita ने कहा:
thanks
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dikshasinhmar ने कहा:
Really superb mam 😊😊😊😊
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pandeysarita ने कहा:
thanks
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अखिलेशरश्मि ने कहा:
यथा अर्थ ,संवेदना ।
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pandeysarita ने कहा:
हमारी सोच पर निर्भर करता है
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VISHAL AHLAWAT ने कहा:
Great mam.
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pandeysarita ने कहा:
Thanks Vishal
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VISHAL AHLAWAT ने कहा:
My pleasure nd I share your poem
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pandeysarita ने कहा:
Thank you so much ☺
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VISHAL AHLAWAT ने कहा:
Welcome mam
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